ज्योतिराव फुले स्त्री मुक्ति के द्योतक : क्यों दलित-आदिवासी-मूलवासी के प्रतीकों याद करना भूल जाती है रघुवर सरकार ?
ज्योतिराव फुले जी की पूण्यतिथि झारखंड में भी दलित संस्थाओं समेत कई अन्य सस्थानों ने मनाई, लेकिन अचंभित यह है कि झारखंड सरकार ने इन्हें याद करना जरूरी नहीं समझा। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि लगभग 169 वर्ष पहले फुले ने हिन्दुस्तान की बेटियों के उज्जवल भविष्य के लिए पहला विद्यालय खोल मनुवादी विचारधारा जोरदार प्रहार किया था। विधवा विवाह का समर्थन, विधवाओं के बाल कटने की प्रथा को रोकने के लिए नाइयों की हड़ताल, बाल विवाह पर रोक, विधवाओं के बच्चों का लालन-पालन, स्त्री समानता, स्त्री स्वतन्त्रता के दृष्टिकोण से ज्योतिराव फुले – सावित्रीबाई फुले द्वारा उठाए गए अनेक क़दमों के कारण चिर काल तक याद किये जाते रहेंगे।
देश के एतिहासिक मान चित्र पर स्त्री मुक्ति व जाति उन्मूलन के संघर्षों में फुले का योगदान बेहद महत्वपूर्ण है। सर्वविदित है कि स्त्री मुक्ति व जाति उन्मूलन आपस में गुँथे हुए हैं। जाति उन्मूलन केवल अन्तरजातीय विवाह से ही संभव हो सकता है परन्तु यह तभी हो सकते हैं जब स्त्री मुक्त हों। साथ ही स्त्री भी तभी स्वतन्त्र हो पाएंगी जब जाति प्रथा ख़त्म होगी।
सामाजिक परिर्वतन के लिए ज्योतिराव फुले ने कभी सरकार की बाट नहीं जोहे बल्कि उपलब्ध साधनों के माध्यम से उन्होंने इस संघर्ष की शुरुआत की। सामाजिक सवालों पर फुले शेटजी (व्यापारी) व भटजी (पुजारी) दोनों को दुश्मन के रूप में चिह्नित कर प्रहार करते रहे। वे ब्रिटिश शासन व भारतीय ब्राह्मणवादियों (मनुवादियों ) के गँठजोड़ को भली भांति समझने लगे थे। वे कहते थे कि अंग्रेज़़ी सत्ता में अधिकांश अधिकारी-पदादिकारी ब्राह्मण हैं और जो अधिकारी अंग्रेज़़ हैं उनकी हड्डी भी ब्राह्मण की ही है।
मौजूदा स्थिति में जब फासीवादी (राघुबर सरकार) जातिप्रथा व पितृसत्ता के आधार पर व साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के माध्यम से आदिवासियों, मूलवासियों, दलितों, स्त्रियों व अल्पसंख्यकों पर हमले तीव्र कर रही हैं, खाने-पीने-जीवनसाथी चुनने व प्रेम के अधिकार को भी छीनने का प्रयास कर रही हैं, तब फुले को याद करने का विशेष औचित्य हो जाता है। साथ ही ब्राह्मणवाद के विरूद्ध संघर्ष तेज़ कर ही उनको सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है व उनके सपनों का समाज बनाया जा सकता है।
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