जेवीएम सुप्रीमों रहते गोड्डा में अडाणी के प्लांट से उत्पादित बिजली को बांग्लादेश भेजे जाने का निर्णय हुआ, उस समय क्यों रहे खामोश बाबूलाल? जब 7 लौह अयस्क के लाइसेंसधारियों को रघुवर सरकार से फायदा मिल रहा था, उस वक्त भी वे क्यों खामोश रहे।
राँची। पूर्व मुख्यमंत्री सह जेवीएम सुप्रीमो सह बीजेपी नेता बाबूलाल मरांडी के केंद्रीय कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी को लिखे पत्र पर सत्तारूढ़ जेएमएम ने पलटवार किया है। जेएमएम महासचिव सह प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा है कि ऐसा कौन सी परिस्थिति बनी, जिससे बाबूलाल को लगा कि राज्य सरकार के उपक्रम सक्षम नहीं हैं। ऐसा क्या हुआ कि जिन लौह अयस्क समूह के खिलाफ बाबूलाल गला फाड़-फाड़ कर चिल्लाते थे, अब उन्हीं का अप्रत्यक्ष तौर पर पैरवी कर रहे है।
बता दें कि बीजेपी नेता ने कैबिनेट के उस फैसले को जनहित के खिलाफ बताया है, जिसमें राज्य के 7 लौह अयस्क खदान को राज्य हित में रिजर्व रखे जाने का फैसला हुआ था। केंद्रीय कोयला मंत्री को लिखे पत्र में बाबूलाल ने कहा है कि झारखंड को इस फैसले से 40 हजार करोड़ का नुकसान होगा। साथ ही पत्र में बाबूलाल ने जीसेमडीसी की क्षमता पर भी सवाल उठाए हैं।
जेवीएम सुप्रीमो रहते बाबूलाल क्यों करते रहे रघुवर नीति का विरोध
जेएमएम नेता ने बाबूलाल मरांडी से तीन सवाल पूछ कर निशाना साधा है। सुप्रियो भट्टाचार्य ने बाबूलाल से सवाल किया है कि जब वे जेवीएम सुप्रीमो थे, तो उन्होंने रघुवर नीतियों का क्यों विरोध करते रहे। दरअसल झारखण्ड सरकार द्वारा 7 लौह अयस्क खदान को राज्य हित के दृष्टिकोण से आरक्षित किये जाने के ऐतिहासिक फैसले पर बुधवार को बाबूलाल ने केंद्रीय मंत्री को पत्र लिख कर आपत्ति तो दर्ज कराई है।
पूरे प्रकरण में दिलचस्प पहलू यह है वह जब जेवीएम सुप्रीमो थे तो इस मुद्दे पर रघुवर साकार का विरोध करते रहे। अब जब उन्होंने खुद को भाजपा को समर्पित कर दिया है तो अचानक से पाला बदल लिया है। ऐसे में उन्हें जनता को यह सच्चाई बताना चाहिए –
लगभग साल भर पहले जब वे जेवीएम सप्रीमो थे, उस वक्त इन्हीं 7 लौह अयस्क खदान के लाइसेंसधारियों को जब रघुवर दास सरकार से फायदा मिल रहा था, तब वे क्यों खामोश रहे?
राज्य सरकार के उपक्रम पीटीपीएस को पिछले रघुवर सरकार ने केंद्रीय उपक्रम एनटीपीसी को हस्तानान्तरित करने का काम किया।तब भी उन्होंने उस निर्णय का विरोध क्यों नहीं किया?
केंद्र की मोदी और तत्कालीन रघुवर दास सरकार ने मिलकर जब अडानी पावर लिमिटेड को गोड्डा में जमीन, कोयला खदान एवं जल जैसे संसाधन कूड़े के भाव में मुहैया कराया। और उससे उत्पादित पूरी बिजली को सीधा बांग्लादेश को देने का निर्णय हुआ। जिसका पूर्ण नफा अदानी को होता है, उस वक़्त भी बाबूलाल ने बिना कोई विरोध किए चुप्पी क्यों साधे रखी?
क्या राज्य सरकार के उपक्रमों को संसाधनपूर्ण बनाना हमारा दायित्व नहीं
उपरोक्त तीन बातों से स्पष्ट है कि बाबूलाल की नीति बिल्कुल गलत अतवा दलबदलू है! क्या राज्य सरकार के उपक्रमों को संसाधनों से परिपूर्ण बनाना हमारा दायित्व नहीं बनाता है? अगर ऐसा होता है, तो इससे प्रत्यक्ष तौर पर राज्य के मूलवासी-आदिवासियों को रोज़गार मिलेगा। और राज्य का ख़ज़ाना राज्य में ही सुरक्षित रहेगा। लेकिन, माननीय बाबूलाल को इसमें भी आपत्ति है।
जबकि होना यह चाहिए कि बाबूलाल अपने नये दल आकाओं अथवा नेतृत्व को समझाए कि सरकारी उपक्रम के संसाधनपूर्ण होने से राष्ट्र की आर्थिक शक्ति मजबूत होगी। राष्ट्र स्वाभिमान बनेगा। अन्य्याथा, उनके कार्यशैली से प्रचलित लोककहावत चरितार्थ होगी – ‘‘सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली’’। जिससे न केवल राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री की जग हंसाई होगी, झारखंड के साख पर भी बट्टा लगेगा।
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